इस बीमारी के कारण एक तिहाई महिलाओं की हड्डी कमजोर

इस बीमारी के कारण एक तिहाई महिलाओं की हड्डी कमजोर

सुमन कुमार

ऑस्‍ट‍ियोपोरोसिस यानी हड्ड‍ियों का कमजोर और भुरभुरा होना भारत में महामारी का रूप लेता जा रहा है। पूरी दुनिया में हृदय रोग के बाद सबसे अधिक मौतें इसी बीमारी के कारण होती हैं। हमारे देश में हड्डी टूटने की 60 फीसदी घटनाएं ऑस्‍ट‍ियोपोरोसिस के कारण होती हैं। यूं तो इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं मगर सबसे अहम कारक है हड्ड‍ियों में कैल्सियम की गंभीर कमी। वैसे एशि‍यन नस्‍लों की बनावट भी इस बीमारी की एक बड़ी वजह के रूप में सामने आई है।

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर

आर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सुशील शर्मा सेहतराग से बातचीत में कहते हैं कि भारत में इस बारे में अब तक अधिकारिक रूप से कोई सर्वे नहीं हुआ है मगर एक अनुमान के अनुसार हर 3 में से एक महिला और 8 में से एक पुरुष इस रोग का शिकार है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को हलकी चोट लगने से भी उनकी हड्डियां टूट सकती हैं। सामान्यतः यह बीमारी 60 वर्ष या उससे ऊपर के लोगों में होनी चाहिए मगर जीवनशैली में बदलाव के बाद अब 40 वर्ष की उम्र के बाद के लोगों में भी इसकी शिकायत आम होती जा रही है।

वजह क्‍या है

दरअसल खान-पान से दुग्ध उत्पादों के गायब होते जाने, व्यायाम की कमी, फास्टफूड कल्चर, कार्बोनेटेड पेय पदार्थों के बढ़ते चलन के कारण यह बीमारी तेजी से बढ रही है। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि आठवीं के बाद बच्चे बोर्ड परीक्षा की चिंता में डूब जाते हैं और खेल कूद भी बंद कर देते हैं। लड़कियों में जीरो फीगर की दीवानगी उन्‍हें पौष्‍ट‍िक भोजन से दूर करने लगती है। लोगों को इस बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं है जिसके कारण वो आसानी से इसकी चपेट में आ जाते हैं।

डॉक्‍टर शर्मा का कहना है कि इस बीमारी से बचने का उपाय यही है कि आप प्रकृति के नजदीक आएं। वह इस बीमारी में योग की भूमिका को भी रेखांकित करते हैं। उनके अनुसार नियमित रूप से योग करने से इस बीमारी को दूर रखने में कामयाबी मिल सकती है। मगर सबसे जरूरी है शरीर में विटामिन डी और कैल्सियम की मात्रा को सही रखना। समय-समय पर विटामिन डी और कैल्सियम की जांच कराते रहें ताकि उनकी कमी होने पर उसे सुधारा जा सके।

शरीर के तापमान से खिलवाड़ ठीक नहीं

दिल्‍ली के मूलचंद अस्‍पताल के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. एस.वी. त्रिपाठी का कहना है कि सबसे पहले लोगों के सामने यह स्पष्ट होना चाहिए कि ऑस्टियोपोरोसिस मानव शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है। बचपन से जवानी और बुढ़ापे तक आते आते शरीर के हर अंग की तरह हड्डियों में भी कमजोरी आती है। यदि लोग प्रकृति के अनुरूप चलें तो परेशानी पैदा रकने वाली स्थिति बुढापे में ही आएगी। मगर वर्तमान समय में लोगों की जीवनशैली प्रकृति अनुकूल नहीं रह गई है। इसलिए यह स्थिति 40 वर्ष के बाद ही आने लगी है।

प्रकृति के अनुकूल रहें

उनके अनुसार जब हम जीवनशैली की बात करते हैं तो इसमें सुबह जगने से लेकर शाम तक शरीर को प्रकृति के अनुकूल रखें, भोजन और जल को मौसम, रोग तथा उम्र के अनुसार रखें और शरीर के तापमान को जबर्दस्ती दवाइयां खाकर कम न करें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। दरअसल शरीर के तापमान पर शरीर का पोषण टिका होता है। तापमान कम होने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और स्लो प्वाइजन की प्रकृति वाली चीजें हमारे शरीर की कोशिकाओं को नष्ट करने लगती है। यह प्रक्रिया हड्डियों के साथ भी होती है। इसलिए शरीर के तापमान में थोडी सी वृद्धि होने पर, सर्दी जुकाम होने पर या इसी तरह की छोटी-मोटी परेशानियों में तत्काल इलाज नहीं शुरू करना चाहिए।

जहां तक इलाज का सवाल है ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों को सोंठ, पीपल, हल्दी मिला दूध, शिलाजीत, अश्वगंधा, मुलैठी आदि दी जाती है। साथ ही पंचकर्म के तहत तीन महीने में एक बार एक सप्ताह के लिए शिरोधारा और पिंड श्वेत की क्रिया कराई जाती है। मरीजों को इस बीमारी में ठंडा पानी, दही, बासी भोजन, खटाई आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

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